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बाल यौन शोषण और सभ्‍य समाज | Child sexual abuse and civil society

Updated: Aug 2, 2022



बच्‍चों का यौन और शारीरि‍क शोषण बहुत ही वीभत्‍स है। बच्‍चों का किसी प्रकार का शोषण किसी भी सभ्‍य समाज पर कलंक है। यह एक सामाजिक बुराई है, जिसे समाज के अंदर ही छिपे वहशी अंजाम देते हैं। कई बार घटना का आभास तक नहीं हो पाता। लोग, डर या कई बार अन्य कारणों से ऐसी घृणित हरकतों को दबा देते हैं। नतीजा अपराधी सजा से वंचित रह जाता है। इस तरह की विकृति पर नियंत्रण लगाना जरूरी है।

 

आज के समय में समाज में अनेक प्रकार की बुराइयां पनप रही हैं। इन बुराइयों का सबसे अधिक बुरा प्रभाव बच्‍चों पर पड रहा है। जिनमें बच्‍चों का यौन शोषण मुख्‍य है। बच्‍चों को अनेक प्रकार की यातनाओं का शिकार होना पड रहा है। बच्‍चों का यौन और शारीरि‍क शोषण बहुत ही वीभत्‍स है। बच्‍चों का किसी प्रकार का शोषण किसी भी सभ्‍य समाज पर कलंक है। यह एक सामाजिक बुराई है, जिसे समाज के अंदर ही छिपे वहशी अंजाम देते हैं। कई बार घटना का आभास तक नहीं हो पाता। लोग, डर या कई बार अन्य कारणों से ऐसी घृणित हरकतों को दबा देते हैं। नतीजा अपराधी सजा से वंचित रह जाता है। ऐसे आरोपितों को जेल भेजने और इस तरह की विकृति पर नियंत्रण लगाना जरूरी है।



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बच्‍चे मन और तन दोनों से ही बहुत कोमल और मासूम होते हैं। थोडा सा भी लालच उन्‍हें बडे खतरे में डाल देता है। संयुक्‍त परि‍वारों में बच्‍चे थोडा सुरक्षित अवश्‍य होते हैं किन्‍तु पूरी तरह से नहीं, क्‍योंकि बच्‍चों के साथ यौन शोषण कहीं भी हो सकता है। आज के समय में बच्‍चे पेरैंट्स के अलावा कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। अधि‍कतर आरोपी बच्‍चे के रिश्‍तेदार या आस-पडोस का ही होता है। पेरैंट्स को इस बात का ख्‍याल रखना चाहिए कि बच्‍चे अब घर पर भी सुरक्षित नहीं हैं। इसलिए बच्‍चों को कहीं भी अकेला न छोडें। बच्‍चों को गुड टच और बेड टच के बारे में बतायें। बच्‍चे में थोडे से बदलाव को अनदेखा न करें। बच्‍चों के साथ दोस्‍ती करें जिससे बच्‍चा अपनी हर बात आपसे शेयर कर सके।


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बच्‍चों को मानसिक रूप से मजबूत बनायें। बाल यौन शोषण एक घिनौना अपराध है। अपराधी को किसी वजह से खुला न छोडे, उसकी शिकायत अवश्‍य करें जिससे वह अपना अगला शिकार न बना सके।


आज के समय में इस प्रकार के घिनौने अपराध के पीछे बच्‍चों और पेरैंट्स में तालमेल की कमी, बच्‍चों और पेरैंट्स में दूरी, बच्‍चों पर आवश्‍यकता से अधिक सख्‍ती करना भी बडे कारण हैं। बच्‍चा चाहकर भी अपने साथ हुई घिनौनी घटना को, मां या पिता से कह नहीं पाता। कहीं वह स्‍वयं अपराधी साबित न कर दिया जाये या उसे ही दोषी न मान लिया जाये या उसे बदनामी न झेलनी पडे। इस विषय में बच्‍चों को मानसिक रूप से बहुत मजबूत बनाने की आवश्‍यकता है। बच्‍चों से दोस्‍ताना व्‍यवहार रखना चाहिए। उनके साथ समय व्‍य‍तीत करना चाहिए। समय-समय बच्‍चों को जानकारी देते रहना चाहिए कि सेक्‍सुअल एब्‍यूज क्‍या है? शरीर के कौन-कौन से अंग हैं जिन्‍हें किसी को भी छूना अपराध और बेड टच की श्रेणी में आता है। इसके साथ ही पेरैंट्स को भी चाहिए कि वह इस बात का ध्‍यान रखें कि‍ बच्‍चा किस-किस से नजदीकियां बढा रहा है या कोई अन्‍य व्‍यक्ति बच्‍चे से नजदीकियां बढाने का प्रयास कर रहा है।


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हमारे देश की न्‍याय संस्‍था भी बच्‍चों यौन शोषण को लेकर फिक्रमंद है।

पोक्सो अधिनियम, 2012 बच्चों को यौन अपराधों, यौन शोषण , अश्लील सामग्री से सुरक्षा प्रदान करने के लिए लाया गया था। इसका उद्देश्य बच्चों के हितों की रक्षा करना और उनका कल्याण सुनिश्चित करना है।


पोक्सो के अनुसार ‘किसी के द्वारा जबदस्ती यौन गतिविधि में शामिल होने के लिए दबाव बनाना यौन शोषण कहलाता है। यौन गतिविधि में शामिल होने के लिए आग्रह करना या सामने वाले व्यक्ति को इसके बदले इनाम देने की बात कहकर उसके समक्ष मौखिक या शारीरिक रूप में यौन व्यवहार को उजागर करना भी यौन शोषण का ही रूप माना जाता है।‘


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पॉक्सो का अर्थ प्रिवेंशन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेस है। बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए साल 2012 में यह कानून बनाया गया। कानून का मकसद बच्चों को एक सुरक्षित माहौल मुहैया कराना और बच्चों के साथ यौन अपराध करने वालों को जल्द से जल्द सजा दिलाना है।


कानून के अनुसार यदि बाल यौन शोषण का कोई मामला सामने आता है तो पुलिस को 24 घंटे के अंदर उस पर कार्रवाई करनी होगी।

बच्चे की पहचान को सुरक्षित रखना भी अनिवार्य है।

कानूनी कार्रवाई के कारण बच्चे को मानसिक रूप से कष्ट ना पहुंचे, इसके लिए उसे बार बार गवाही देने के लिए भी नहीं बुलाया जा सकता।

पूरी कार्रवाई को बच्चे के हक में करने पर विस्तार से निर्देश दिए गए हैं।


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माता-पिता की मौजूदगी में जल्द से जल्द डॉक्टरी जांच कराना और बाल विकास समिति को सूचित करना भी पुलिस की जिम्मेदारी है।

इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति को बाल यौन शोषण के बारे में जानकारी हो, तो उसका पुलिस को सूचित करना अनिवार्य है। उदाहरण के लिए, यदि किसी स्कूली टीचर को किसी स्टूडेंट के साथ हो रहे उत्पीड़न की खबर हो और वह उस बारे में जानकारी ना दे तो उसे छह महीने की जेल हो सकती है। बच्चे का शोषण करने वाले को आजीवन कारावास और जुर्माने की सजा होगी।



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